विभाग का संक्षिप्त इतिहास:
हिंदी विभाग की स्थापना सन् 1968 में हुई है। मराठवाडा जैसे ग्रामीण क्षेत्र में स्थापित इस विभाग में हमेशा नाविन्यपूर्ण उपक्रम चलाए गए हैं। हिंदी साहित्य के साथ भाषा-विज्ञान, अनुवाद, प्रयोजनमूलक हिंदी, मीडिया लेखन, साहित्य और सिनेमा जैसे विषयों को पाठ्यक्रम में स्थान दिया गया है। उदयोगों, संचार, तकनीक, अनुवाद और अनुसंधान की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए विभाग ने परिणाम आधारित शिक्षा पाठ्यक्रम का निर्माण किया है। विभाग में स्वतंत्र रुप से ग्रंथालय है, जिसमें लगभग 2890 ग्रंथों तथा 1156 पत्रिकाएँ उपलब्ध हैं ।
विभाग में शोध-संदर्भ कक्ष है, जिसमें 300 सौ से अधिक शोधप्रबंध उपलब्ध है। ICT कक्ष भी स्वतंत्र रुप से उपलब्ध है। पाठ्यक्रम में इलेक्ट्रानिक मीडिया विषय को समाहित किया गया हैं। इसे ध्यान में रखते हुए ‘मीडिया कक्ष’ की स्थापना की गई है । साथ ही साहित्य और सिनेमा के अन्तर संबंध को समझने के लिए कुछ प्रसिद्ध रचनाकारों और साहित्य आधारित फिल्मों की सीडी (CD) भी उपलब्ध है, जिसका प्रयोग छात्र करते हैं। इस प्रकार विभाग का दृष्टिकोण छात्र केंद्रित है। आज के उतरआधुनिक तकनीकी समाज में छात्रों को मानवीय संवेदना के साथ रोजगारपरक भाषा कौशल निर्माण हेतु सक्षम बनाना है। इस विभाग के योगदान में कई अध्यापकों का योगदान रहा है, जिसमें विभाग के प्रथम कुलपति बनने का श्रेय प्रो. डॉ. स्वर्गीय भगतसिंह राजूरकर को मिला है। भाषा विज्ञान के मर्मज्ञ डॉ. राजमल बोरा जी, डॉ. चंद्रभानु सोनवणे जी, डॉ. अंबादास देशमुख जी तथा डॉ. माधव सोनटक्के जी जैसे आलोचको ने हिंदी विभाग को ऊँचाई पर ले जाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। आज विभाग के कई छात्र ‘केंद्रिय हिंदी निदेशालय,’ दिल्ली तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर रहें हैं।